मध्य प्रदेश के किसान ऐसी सोयाबीन किस्मों की तलाश में रहते हैं जो जल्दी पकने वाली हो, कम रोग लगें, कम स्प्रे की आवश्यकता हो और हर परिस्थिति में अच्छा प्रदर्शन दे। किसानों की यही कोशिश होती है कि कम लागत में अधिक उपज प्राप्त हो। आज हम बात करेंगे ऐसी दो बेहतरीन किस्मों की जो न केवल रोगों के प्रति सहनशील हैं, बल्कि कम समय में अधिक उपज देने की क्षमता भी रखती हैं। ये वैरायटीज़ खासकर चारकोल रॉट, राइजोक्टोनिया, एरियल ब्लाइट और एलो मोज़ेक वायरस जैसी आम बीमारियों के खिलाफ काफी हद तक सहनशील हैं।
एनआरसी 142 सोयाबीन वैरायटी की पूरी जानकारी
एनआरसी 142 को वर्ष 2021 में इंदौर स्थित अनुसंधान केंद्र द्वारा विकसित किया गया था। इस किस्म की पौध की ऊंचाई लगभग 72 से 75 सेंटीमीटर होती है, जो इसे कंबाइन हार्वेस्टिंग के लिए उपयुक्त बनाती है। यह किस्म सेंट्रल ज़ोन के लिए अनुशंसित है और फुटाव वाली किस्म होने के कारण इसकी बुवाई के समय लाइन से लाइन की दूरी 14 से 18 इंच और पौधे से पौधे की दूरी 5 से 7 सेंटीमीटर रखनी चाहिए।

एनआरसी 142 की फली तीन दाने वाली, रुईदार और ऊंचाई पर लगती है, जिससे कटाई आसान हो जाती है। पौधे की पत्तियां नुकीली होती हैं और तना मजबूत व मोटा होता है, जिससे गिरने की संभावना बहुत कम रहती है। यह किस्म लगभग 95 दिनों में पूरी तरह पककर तैयार हो जाती है। 48 से 50 दिन के भीतर फूल आना शुरू हो जाते हैं और फूलों का रंग बैंगनी होता है।
इस किस्म की बुवाई के लिए प्रति एकड़ 30 से 32 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। उपज की बात करें तो एक एकड़ में 8 से 12 क्विंटल तक पैदावार ली जा सकती है, बशर्ते फसल का प्रबंधन सही ढंग से किया गया हो। जिन किसानों ने पहले GS 9560 किस्म का प्रयोग किया है, वे अब एनआरसी 142 को अधिक प्राथमिकता दे रहे हैं। मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में इस वैरायटी का प्रचलन तेजी से बढ़ रहा है।
जीएस 2172 सोयाबीन वैरायटी का प्रदर्शन
जीएस 2172 वैरायटी को वर्ष 2021 में जबलपुर स्थित जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित किया गया था। यह किस्म फैलाव वाली है और लगभग 38 से 42 दिनों में फूल आना प्रारंभ हो जाते हैं। फूलों का रंग सफेद होता है और तीन दाने वाली फलियां बनती हैं। पौधों की ऊंचाई कमर तक होती है, जिससे कटाई में कोई कठिनाई नहीं आती।
जीएस 2172 किस्म भी 95 दिनों में परिपक्व हो जाती है और इसके लिए प्रति एकड़ लगभग 35 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। मौसम परिवर्तन की स्थिति, विशेषकर सूखे की परिस्थिति में, यह वैरायटी अन्य किस्मों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन देती है। खासकर फ्लावरिंग स्टेज पर अगर बारिश नहीं होती है, तो भी यह सूखने की स्थिति में नहीं जाती, जिससे उत्पादन पर असर नहीं पड़ता।
इस किस्म में भी तना मोटा और मजबूत होता है और गिरने की समस्या न के बराबर होती है। यह किस्म भी रोगों के प्रति सहनशील है, जिससे फसल सुरक्षित रहती है और कम दवा के प्रयोग में ही अच्छी पैदावार मिलती है। जीएस 2172 के माध्यम से किसान 9 से 13 क्विंटल तक की उपज प्राप्त कर सकते हैं।
दोनों वैरायटीज़ क्यों हैं एमपी के लिए बेस्ट?
मध्य प्रदेश के अधिकांश किसानों ने पिछले वर्षों में इन दोनों वैरायटीज़ का प्रदर्शन देखा है और उन्हें अपनाया है। दोनों ही किस्में 95 दिनों में तैयार हो जाती हैं, रोगों के प्रति सहनशील हैं और यांत्रिक कटाई के लिए उपयुक्त हैं। इसके अलावा दोनों किस्मों की उपज क्षमता 8 से 12 या उससे अधिक क्विंटल प्रति एकड़ तक जाती है, जो कि अन्य सामान्य किस्मों की तुलना में कहीं अधिक है।
एनआरसी 142 और जीएस 2172 न केवल उन्नत तकनीक से विकसित की गई हैं, बल्कि वर्तमान कृषि जलवायु और किसानों की आवश्यकताओं के अनुरूप भी सिद्ध हो रही हैं। यदि आप मध्य प्रदेश या महाराष्ट्र जैसे राज्यों में खेती कर रहे हैं, तो इन किस्मों को आजमाकर देखें। आप चाहे तो पहले सीमित भूमि पर डेमो लगाकर इसकी उपज और प्रदर्शन को स्वयं परख सकते हैं।
निष्कर्ष:
एनआरसी 142 और जीएस 2172 आज के समय में मध्य प्रदेश के किसानों के लिए दो सबसे बेहतरीन सोयाबीन की किस्में मानी जा रही हैं। यदि आप भी इन किस्मों का चयन करते हैं, तो संभावनाएं हैं कि आप पहले से अधिक और बेहतर उपज प्राप्त करेंगे। अगर आपको लगता है कि इनसे भी कोई बेहतर किस्म मौजूद है, तो कृपया कमेंट्स में ज़रूर साझा करें ताकि अन्य किसान भाइयों को भी इसका लाभ मिल सके।

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