मध्य प्रदेश देश के सबसे बड़े लहसुन उत्पादक राज्यों में शामिल है। यहां के किसान बड़े पैमाने पर लहसुन की खेती करते हैं, खासकर मंदसौर, नीमच और आसपास के इलाकों में। लेकिन इस साल की शुरुआत से ही किसान लहसुन की गिरती कीमतों को लेकर बेहद चिंतित हैं।
किसानों की उम्मीदों पर फिरा पानी
पिछले कुछ वर्षों के बाजार के रुझान को देखते हुए, इस क्षेत्र के किसानों ने बीते साल महंगे दामों पर लहसुन का बीज खरीदा था और बड़े पैमाने पर इसकी खेती की थी। किसानों को उम्मीद थी कि उन्हें अच्छी कीमत मिलेगी और उनकी मेहनत सफल होगी। लेकिन इस बार बंपर उत्पादन के चलते मंडियों में पहले ही लहसुन के दाम ₹4000 से ₹8000 प्रति क्विंटल के बीच रह गए थे।
भारत-पाक तनाव का असर
जहां एक ओर उत्पादन बढ़ा, वहीं दूसरी ओर भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव का भी असर देखने को मिला। इस तनाव के कारण लहसुन की कुछ किस्मों के दाम औंधे मुंह गिर गए। अब बाजार में कई किस्मों के लहसुन के दाम ₹1000 से ₹3000 प्रति क्विंटल तक सिमट गए हैं। यह गिरावट इतनी ज्यादा है कि किसानों के लिए अपनी लागत तक निकालना मुश्किल हो गया है।
किसानों की बढ़ती मुश्किलें
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, किसानों का कहना है कि मौजूदा बाजार दरों पर उन्हें उत्पादन की लागत भी नहीं निकल रही। कई किस्मों पर किसानों को महज ₹300 से ₹1000 प्रति क्विंटल तक का न्यूनतम मूल्य मिल रहा है।
मंडियों में मौजूदा कीमतें
मध्य प्रदेश की अधिकांश मंडियों में लहसुन की मॉडल कीमतें ₹2000 से ₹4000 प्रति क्विंटल के बीच दर्ज की गई हैं। हालांकि, हकीकत इससे कहीं ज्यादा परेशान करने वाली है। कुछ मंडियों में न्यूनतम कीमतें ₹12, ₹300, ₹500, ₹700, और ₹800 प्रति क्विंटल तक गिर गई हैं। इतनी कम कीमतें किसानों की दुश्वारियों को साफ तौर पर उजागर करती हैं।
किसानों की नाराजगी और चिंता
लहसुन की कम कीमतों के कारण किसान न केवल निराश हैं, बल्कि उनकी आर्थिक स्थिति भी डगमगा गई है। महंगे बीज, उर्वरक, मजदूरी और सिंचाई पर किया गया भारी निवेश अब घाटे में जाता दिख रहा है। किसानों का कहना है कि यदि कीमतों में सुधार नहीं हुआ, तो भविष्य में लहसुन की खेती करना उनके लिए लगभग असंभव हो जाएगा।
निष्कर्ष
मध्य प्रदेश के किसानों की हालत इस समय बेहद खराब है। उत्पादन अच्छा होने के बावजूद कीमतें इतनी कम हो गई हैं कि लागत निकाल पाना भी मुश्किल हो गया है। सरकार और संबंधित विभागों को चाहिए कि वे किसानों की मदद के लिए उचित कदम उठाएं, ताकि उनकी मेहनत का सही मूल्य मिल सके और वे भविष्य में खेती करने के लिए प्रोत्साहित हों।

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