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कुसुम की खेती कैसे करें: पूरी जानकारी, लाभ और 3-4 बार कटाई का तरीका जानिए

कुसुम की खेती

कुसुम को हिंदी में ‘कुसुम्भ’ और अंग्रेजी में ‘Safflower’ कहा जाता है। यह फसल मुख्यतः रबी सीजन में उगाई जाती है और इसके बीजों से उच्च गुणवत्ता का तेल प्राप्त होता है, जिसमें 24-36% तक तेल की मात्रा होती है। इसके अलावा, इसके फूलों और पत्तियों का उपयोग औषधीय गुणों के लिए भी किया जाता है।

उपयुक्त जलवायु और मिट्टी

कुसुम की खेती के लिए 15-20°C तापमान और 60-90 सेमी वार्षिक वर्षा उपयुक्त मानी जाती है। यह फसल रेतली-दोमट और जैविक तत्वों से भरपूर मिट्टी में अच्छी पैदावार देती है। भारी काली मिट्टी में इसकी जड़ें गहराई तक जाती हैं, जिससे सूखा सहनशीलता बढ़ती है।

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उन्नत किस्में

कुसुम की कई उन्नत किस्में उपलब्ध हैं,

  • NARI-6: उच्च तेल मात्रा और रोग प्रतिरोधक क्षमता।

  • ISF-300: 134 दिनों में पकने वाली किस्म, जिसमें 38.2% तक तेल होता है।के-65: 180-190 दिनों में पकने वाली किस्म, जिसमें 30-34% तक तेल होता है।

  • मालवीय कुसुम 305: 155-160 दिनों में पकने वाली किस्म, जिसमें 37% तक तेल होता है।

बुवाई का समय और विधि

कुसुम की बुवाई का उपयुक्त समय सितंबर के अंतिम सप्ताह से अक्टूबर के प्रथम सप्ताह तक होता है। यदि खरीफ सीजन में सोयाबीन बोई गई हो, तो अक्टूबर के अंत तक बुवाई की जा सकती है। बुवाई करते समय कतार से कतार की दूरी 45 सेमी और पौधे से पौधे की दूरी 20 सेमी रखें। बीजों को 5-7 सेमी गहराई पर बोएं।

बीज उपचार

बुवाई से पहले बीजों को थाइरम या विटावेक्स पाउडर (3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज) से उपचारित करें। यह फफूंदनाशी बीजों को रोगों से बचाता है और अंकुरण दर को बढ़ाता है।

कुसुम की खेती

खाद और उर्वरक प्रबंधन

मिट्टी परीक्षण के आधार पर उर्वरकों का प्रयोग करें। यदि मिट्टी परीक्षण उपलब्ध नहीं है, तो सामान्यतः नाइट्रोजन 40-60 किलोग्राम, फॉस्फोरस 40 किलोग्राम और पोटाश 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से उर्वरकों का प्रयोग करें। इसके अलावा, 4-5 टन सड़ी गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर बुवाई से पहले डालें।

सिंचाई प्रबंधन

कुसुम की फसल को अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती। पहली सिंचाई बुवाई के 50-55 दिन बाद और दूसरी सिंचाई 80-85 दिन बाद करें। फूल निकलने की अवस्था में सिंचाई से बचें, क्योंकि इससे फूल झड़ सकते हैं।

खरपतवार नियंत्रण

बुवाई के 20-25 दिन बाद निराई-गुड़ाई करें और अनावश्यक पौधों को निकाल दें। खरपतवार नियंत्रण के लिए बुवाई से पहले ट्राइफ्लूरालिन (200 ग्राम प्रति एकड़) या ईपीटीसी (200 ग्राम प्रति एकड़) का प्रयोग करें।

कटाई और उपज

कुसुम की फसल 120-130 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। जब पौधों की पत्तियां सूखने लगें और बीज कठोर हो जाएं, तब कटाई करें। कटाई के बाद फसल को 2-3 दिनों तक धूप में सुखाएं और फिर मड़ाई करें। एक हेक्टेयर में अच्छी देखभाल से 17-18 क्विंटल तक उपज प्राप्त की जा सकती है।

बहुपरती कटाई (मल्टी कटिंग)

यदि कुसुम की खेती हरे साग के लिए की जा रही है, तो पहली कटाई बुवाई के 35-40 दिन बाद करें। इसके बाद, प्रत्येक 10-15 दिन के अंतराल पर 2-3 बार और कटाई की जा सकती है। कटाई करते समय जमीन से 2 इंच ऊपर से काटें, ताकि नए शाखाएं निकल सकें।

आर्थिक लाभ

कुसुम की खेती से किसानों को तेल, साग, फूल और बीजों के माध्यम से आय प्राप्त होती है। इसके बीजों से प्राप्त तेल का उपयोग खाना पकाने में होता है, जबकि खली पशुओं के चारे के रूप में उपयोगी होती है। इसके फूलों का उपयोग औषधीय गुणों के लिए किया जाता है

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