आज हम आपको एक ऐसी मां की कहानी सुनाने जा रहे हैं जिसने मेहनत, हिम्मत और तकनीक की मदद से न केवल अपनी ज़िंदगी बदली, बल्कि अपने बच्चों के भविष्य की राह भी आसान बना दी। हम बात कर रहे हैं बांग्लादेश के खुस्तिया जिले के होरिंगाची गांव की बानी आक्तर की, जिनका मछली पालन का सफर आज हजारों महिलाओं के लिए प्रेरणा बन चुका है।
जब परेशानियों से हार मानने की जगह चुना नया रास्ता
दोस्तों, बानी आक्तर ने सात साल तक साहूकारी का काम किया, ताकि खेती की आमदनी के साथ अपने परिवार को संभाल सकें। लेकिन ये काम उन्हें मानसिक तनाव, बीमारी और लगातार चिंता ही दे रहा था।
भाइयों, दो साल पहले उन्होंने एक बड़ा फैसला लिया और मछली पालन की ओर कदम बढ़ाया। उनके पास अपने ससुर की 1 बीघा जमीन थी जिस पर वह पहले से खेती कर रही थीं। लेकिन सूखे मौसम की मार से पैदावार घटती जा रही थी और बच्चों की पढ़ाई का खर्च उठाना मुश्किल हो रहा था। ऐसे समय में बानी ने अपने पुराने सौर पंप को ही अपनी नई उम्मीद बना लिया।
सौर पंप से सजीव हुआ सूखे में भी जल भरा तालाब
दोस्तों, जिस इलाके में बिजली का भरोसा नहीं, वहां सौर ऊर्जा किसी वरदान से कम नहीं है। बानी और उनके पति पहले इस पंप का इस्तेमाल फसल की सिंचाई के लिए करते थे, लेकिन अब यही पंप मछली पालन में उनकी सबसे बड़ी ताकत बन गया है।
भाइयों, जब बाकी तालाबों में पानी सूख जाता है, तब बानी का तालाब पानी संभाल लेता है। गंदा पानी निकालकर वह पंप से साफ पानी भरती हैं और इस तरह मछलियों के लिए अच्छा वातावरण बनता है।
बच्चों की पढ़ाई बनी मछली पालन की प्रेरणा
बानी अब तक 50,000 से 60,000 टका (लगभग 410 से 493 अमेरिकी डॉलर) की मछली बेच चुकी हैं और घर के लिए भी पर्याप्त मछली रखती हैं। इस आमदनी से उन्होंने अपने तीनों बच्चों की स्कूल फीस और ट्यूशन की व्यवस्था की है।
दोस्तों, आठवीं कक्षा तक पढ़ी बानी आज चाहती हैं कि उनके बच्चे यूनिवर्सिटी तक जाएं। यही सपना उन्हें और मेहनत करने की प्रेरणा देता है।
एक मां से बनी पूरे गांव की प्रेरणा
भाइयों, बानी सिर्फ खुद के लिए नहीं, बल्कि पूरे गांव की महिलाओं के लिए मिसाल बन चुकी हैं। अब उनके साथ पांच रिश्तेदार भी इस काम में हाथ बंटा रहे हैं।
बानी कहती हैं कि अब गांव की महिलाएं भी पारंपरिक कामों से आगे सोच रही हैं। चाहे उनकी टीम में जुड़ें या खुद का काम शुरू करें, महिलाएं आज नए अवसरों को अपनाने के लिए तैयार हो रही हैं।
जब महिलाएं बनीं पर्यावरण की रक्षक
दोस्तों, ये बदलाव संभव हुआ है UN Women और IDCOL के EmPower प्रोग्राम की मदद से। इस योजना ने ग्रामीण महिलाओं को सौर ऊर्जा तकनीक सस्ती किश्तों और ट्रेनिंग के ज़रिए उपलब्ध करवाई। इससे महिलाएं अब ईंधन पर खर्च नहीं करतीं, पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचातीं, और आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बन रही हैं।
EmPower प्रोग्राम:
EmPower, UN Women और United Nations Environment Programme की एक संयुक्त पहल है, जिसका उद्देश्य एशिया-प्रशांत क्षेत्र में महिलाओं को जलवायु के प्रति सजग और सशक्त बनाना है। इस कार्यक्रम के तहत 4,300 से अधिक महिलाओं को सस्ती तकनीक और वित्तीय सहायता दी जा चुकी है।
यह है असली परिवर्तन की कहानी
एक मां जिसने अपने बच्चों की शिक्षा का सपना देखा और उसे पूरा करने के लिए मेहनत की। बानी की कहानी हमें सिखाती है कि सशक्तिकरण तब होता है जब तकनीक, संकल्प और सही सहयोग एक साथ आते हैं।
Disclaimer: यह लेख केवल सूचना आधारित है। कृपया किसी भी योजना या सेवा को अपनाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ या संस्थान से मार्गदर्शन अवश्य लें।
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