कपास भारत की एक प्रमुख खरीफ नगदी फसल है जो किसानों को फसल कटाई के तुरंत बाद नकद आय प्रदान करती है। यह फसल देश के 10-12 राज्यों में व्यापक रूप से उगाई जाती है, जिन्हें तीन प्रमुख जोन में वर्गीकृत किया गया है:
1. उत्तरी जोन (नॉर्थ जोन)
इस क्षेत्र में पंजाब, हरियाणा और राजस्थान जैसे राज्य शामिल हैं जहां कपास की खेती मुख्यतः सिंचाई पर निर्भर होती है। इन राज्यों में कपास की बुवाई का आदर्श समय अप्रैल-मई माह होता है।
2. मध्य जोन (सेंट्रल जोन)
मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात जैसे राज्यों को समाहित करने वाले इस क्षेत्र में 90% कपास की खेती वर्षा आधारित होती है। यहाँ बुवाई का उपयुक्त समय जून माह (मानसून आगमन के बाद) होता है।
3. दक्षिणी जोन (साउथ जोन)
कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु और ओडिशा के कुछ हिस्सों में भी कपास की खेती मानसून पर निर्भर होती है और जून माह में ही बुवाई की जाती है।
उच्च उत्पादन के लिए बीज चयन
कपास से 12-20 क्विंटल प्रति एकड़ उत्पादन प्राप्त करने के लिए बीज चयन सर्वाधिक महत्वपूर्ण कारक है। गलत मिट्टी में गलत बीज की बुवाई उत्पादन को 50% तक कम कर सकती है। बीज खरीदते समय निम्न बातों का ध्यान रखें:
बीज पैकेट पर अंकित मिट्टी के प्रकार की जाँच अवश्य करें। यदि आपकी मिट्टी का प्रकार निर्धारित नहीं कर पा रहे हैं तो मिट्टी का नमूना लेकर कृषि विशेषज्ञ या बीज विक्रेता से सलाह लें। कपास की खेती तीन प्रकार की मिट्टियों – हल्की (कम जल धारण क्षमता), मध्यम और भारी (क्ले मिट्टी) में सफलतापूर्वक की जा सकती है, बशर्ते मिट्टी में कार्बनिक पदार्थों की मात्रा 1-2% हो।

बुवाई तकनीक
एक एकड़ कपास की बुवाई के लिए लगभग 950 ग्राम बीज की आवश्यकता होती है। बुवाई की दूरी मिट्टी के प्रकार और किस्म के अनुसार निर्धारित करें:
सिंचित खेती के लिए
सीधी बढ़ने वाली किस्मों के लिए: कतार से कतार 4 फीट व पौधे से पौधे 1 फीट
फैलने वाली किस्मों के लिए: कतार से कतार 4 फीट व पौधे से पौधे 1.5 फीट
भारी मिट्टी के लिए: कतार से कतार 4.5-5 फीट
पौध संख्या प्रबंधन
सिंचित खेती: प्रति एकड़ 4,000-6,000 पौधे
वर्षा आधारित खेती: प्रति एकड़ 10,000-11,000 पौधे
उर्वरक प्रबंधन
पारंपरिक डीएपी के स्थान पर एसएसपी (सिंगल सुपर फॉस्फेट) का प्रयोग करें जिसमें 11% सल्फर, 21% कैल्शियम और 16% फॉस्फोरस होता है। सल्फर कपास के बीज में तेल की मात्रा बढ़ाने में सहायक होता है। संतुलित पोषण के लिए निम्न उर्वरक मिश्रण तैयार करें:
एसएसपी (100 किग्रा/एकड़) + यूरिया (50 किग्रा/एकड़) + एमओपी (10 किग्रा/एकड़) + सल्फर 90% WDG (3 किग्रा/एकड़) + मैग्नीशियम सल्फेट (10 किग्रा/एकड़)। मैग्नीशियम की कमी से पत्तियों का लाल होना और क्लोरोफिल संश्लेषण में बाधा जैसी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।
खरपतवार नियंत्रण
कपास में खरपतवार प्रबंधन के लिए पेंडामेथिलिन 38.7% CS (700 मिली/एकड़) का प्रयोग करें। इसे दो तरीकों से प्रयोग किया जा सकता है:
1. पूर्व-अंकुरण विधि
बुवाई से पूर्व 10-15 किग्रा सूखी रेत में दवा मिलाकर समान रूप से खेत में छिड़कें और तुरंत सिंचाई करें।
2. बुवाई उपरांत विधि
बुवाई के 48 घंटे के भीतर दवा का छिड़काव कर तुरंत सिंचाई करें। यह दवा कैप्सूल सस्पेंशन (CS) फॉर्म में होती है जो सिंचाई के बाद कैप्सूल फटने पर मिट्टी पर सुरक्षात्मक परत बनाती है।
सफल कपास खेती के मुख्य सूत्र
कपास की सफल खेती के लिए क्षेत्रानुसार बुवाई का समय, मिट्टी के प्रकार के अनुरूप बीज चयन, उचित पौध संख्या प्रबंधन, संतुलित पोषण और समय पर खरपतवार नियंत्रण अत्यंत आवश्यक हैं। उत्तरी क्षेत्रों में अप्रैल-मई में सिंचाई आधारित, जबकि मध्य और दक्षिणी क्षेत्रों में जून में मानसून आगमन के बाद बुवाई करें। एसएसपी और मैग्नीशियम सल्फेट जैसे पोषक तत्वों का प्रयोग फसल की गुणवत्ता और उत्पादन में वृद्धि करता है। खरपतवार नियंत्रण के लिए पेंडामेथिलिन का समय पर प्रयोग फसल को प्रारंभिक अवस्था से ही खरपतवार मुक्त रखता है। इन सभी उपायों को अपनाकर किसान भाई कपास की खेती से अधिकतम उत्पादन एवं आय प्राप्त कर सकते हैं।

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