Blight Disease in Paddy: झुलसा रोग ने किसानों की नींद उड़ाई, इन दवाओं से मिलेगा 100% नियंत्रण

Blight Disease in Paddy: झुलसा रोग ने किसानों की नींद उड़ाई, इन दवाओं से मिलेगा 100% नियंत्रण

Blight Disease in Paddy: धान की खेती कर रहे किसान भाइयों के लिए सबसे बड़ा खतरा झुलसा रोग है। यह रोग धान की फसल में 30 से 50 दिन की अवस्था के बीच सबसे ज्यादा दिखाई देता है। इस लेख में हम आपको बताएंगे कि झुलसा रोग कितने प्रकार का होता है, इसके लक्षण क्या हैं, यह किस वजह से फैलता है और इसे कंट्रोल करने के लिए कौन से टेक्निकल और दवाएं सबसे असरदार हैं। साथ ही जानेंगे कि किसान भाइयों को इस समय कौन सी बड़ी गलती बिल्कुल नहीं करनी चाहिए, वरना फसल बर्बाद हो सकती है।

झुलसा रोग के प्रकार

धान में झुलसा रोग एक नहीं बल्कि तीन अलग-अलग रूपों में दिखाई देता है। पहला है बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट, दूसरा है शीथ ब्लाइट और तीसरा है बैक्टीरियल पेनिकल ब्लाइट। ये तीनों अलग-अलग अवस्थाओं में धान को प्रभावित करते हैं और पैदावार पर भारी नुकसान पहुंचाते हैं।

Blight Disease in Paddy: झुलसा रोग ने किसानों की नींद उड़ाई, इन दवाओं से मिलेगा 100% नियंत्रण

1. बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट: शुरुआती अवस्था का सबसे खतरनाक रोग

यह रोग धान की फसल में 30 से 40 दिन की अवस्था पर दिखना शुरू होता है। शुरुआत में किसान इसे खैरा रोग समझकर नजरअंदाज कर देते हैं। इसकी पहचान पत्तियों के ऊपरी सिरे और किनारों पर हल्की पीली धारियों से होती है, जो बाद में भूरे रंग की बनकर पूरी पत्ती को सुखा देती हैं। सुबह के समय रोगी पत्तियों पर ओस की बूंदें दिखाई दें तो यह लीफ ब्लाइट का साफ संकेत है। यह रोग जलभराव, अधिक खरपतवार और ज्यादा यूरिया डालने से तेजी से फैलता है।

2. शीथ ब्लाइट: 50 दिन की अवस्था पर बड़ा संकट

जब धान की फसल गोभ अवस्था में पहुंचती है तो फफूंदजनित शीथ ब्लाइट का खतरा बढ़ जाता है। इसकी शुरुआत आमतौर पर खेत की मेड के पास होती है, जहां पानी जमा रहता है। इसमें धान की तनों के पास वाली पत्तियों पर गोल-गोल जामुनी भूरे धब्बे बनते हैं, जो धीरे-धीरे पूरे पौधे में फैल जाते हैं। इसका असर पौधे की अंदरूनी पत्तियों तक जाता है और कल्ले सूखने लगते हैं।

Blight Disease in Paddy: झुलसा रोग ने किसानों की नींद उड़ाई, इन दवाओं से मिलेगा 100% नियंत्रण

3. बैक्टीरियल पेनिकल ब्लाइट: बालियों में लगने वाला रोग

जैसे ही धान में बालियां निकलती हैं, इस समय सबसे बड़ा खतरा बैक्टीरियल पेनिकल ब्लाइट का होता है। यह रोग सीधे-सीधे फसल की पैदावार को प्रभावित करता है। बालियों के ऊपरी हिस्से के दाने हल्के, भूरे और सूखे रह जाते हैं। कई बार बालियां खाली रह जाती हैं। यह रोग फसल की पैदावार में 60 से 70% तक का नुकसान पहुंचा सकता है।

झुलसा रोग का नियंत्रण

बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट और पेनिकल ब्लाइट के नियंत्रण के लिए सबसे असरदार दवाओं में केमाइसिन शामिल है। इसमें स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट और टेट्रासाइक्लिन हाइड्रोक्लोराइड होता है, जो बैक्टीरिया को तुरंत रोक देता है। इसका 6 से 12 ग्राम प्रति एकड़ डोज काफी है।

एक और प्रभावी उपाय है COC 50 यानी कॉपर ऑक्सीक्लोराइड। यह एक साथ बैक्टीरिया और फफूंद दोनों को नष्ट करता है। इसका 400 ग्राम प्रति एकड़ डोज इस्तेमाल किया जाता है। माइसिन मैक्स भी एक बेहतर विकल्प है, जिसमें कासुगा माइसिन होता है। यह प्रिवेंटिव और क्यूरेटिव दोनों तरीके से काम करता है।

शीथ ब्लाइट के नियंत्रण के लिए फंगीसाइड का उपयोग जरूरी है। पिटर (थायोफ्लूजामाइड 24% एससी), प्लांटिवो (टेबुकोनाजोल 50% + ट्राईफ्लॉक्सी स्ट्रोबेन 25% डब्ल्यूजी) और एजोजोल (एजोक्सी स्ट्रोबेन + डाईफेनाकोनाजोल) बेहद असरदार माने जाते हैं। इनका उपयोग करने से शीथ ब्लाइट और आगे होने वाले गर्दन तोड़ रोग दोनों पर काबू पाया जा सकता है।

किसानों को किन गलतियों से बचना चाहिए

झुलसा रोग फैलने पर किसान अक्सर ज्यादा यूरिया डालते हैं, जिससे स्थिति और बिगड़ जाती है। इसके अलावा एक खेत का संक्रमित पानी दूसरे खेत में जाने से यह रोग तेजी से फैलता है। ऐसे समय में नाइट्रोजन की मात्रा कम करनी चाहिए और खेत की सही निकासी व्यवस्था पर ध्यान देना चाहिए।

FAQs

धान की फसल में झुलसा रोग सबसे ज्यादा कब आता है?

यह रोग धान की फसल में 30 से 50 दिन की अवस्था और बालियां निकलने के समय सबसे ज्यादा आता है।

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बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट की पहचान कैसे करें?

पत्तियों के ऊपरी सिरों पर पीली धारियां बनती हैं और सुबह ओस की बूंदें दिखाई देती हैं।

बैक्टीरियल पेनिकल ब्लाइट कितना नुकसान करता है?

यह रोग फसल की पैदावार में 60 से 70% तक की हानि पहुंचा सकता है।

झुलसा रोग के लिए कौन-कौन सी दवाएं असरदार हैं?

केमाइसिन, COC 50, माइसिन मैक्स, पिटर, प्लांटिवो और एजोजोल प्रभावी दवाएं हैं।

झुलसा रोग से बचाव के लिए किसानों को क्या सावधानियां रखनी चाहिए?

ज्यादा यूरिया का प्रयोग न करें, खेत में जलभराव न होने दें और संक्रमित खेत का पानी दूसरे खेत में न जाने दें।

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