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कांदा की खेती से 25-30 टन प्रति हेक्टेयर उत्पादन लेना है

कांदा की खेती से 25-30 टन प्रति हेक्टेयर उत्पादन लेना है तो पोषक तत्व का सही प्रबंधन इस वैज्ञानिक तरीका से जाने

कांदा की खेती में 25-30 मीट्रिक टन प्रति हेक्टेयर उत्पादन प्राप्त करने के लिए पोषक तत्व प्रबंधन सबसे महत्वपूर्ण कारक है। कांदा की फसल मिट्टी से भारी मात्रा में पोषक तत्व अवशोषित करती है, इसलिए संतुलित उर्वरक प्रबंधन आवश्यक है। यह लेख कांदा खेती में पोषक तत्वों के वैज्ञानिक प्रबंधन की पूरी जानकारी प्रदान करेगा।

कांदा खेती में पोषक तत्वों का महत्व

कांदा फसल के लिए संतुलित पोषण न केवल उत्पादन बढ़ाता है बल्कि फसल की गुणवत्ता, रोग प्रतिरोधक क्षमता और भंडारण क्षमता भी सुधारता है। अधिकांश किसान रासायनिक उर्वरकों का अत्यधिक उपयोग करते हैं, लेकिन वैज्ञानिक तरीके से पोषक तत्व प्रबंधन करने पर कीटनाशकों पर खर्च कम करते हुए बेहतर उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।

मुख्य पोषक तत्व प्रबंधन

नाइट्रोजन प्रबंधन

नाइट्रोजन कांदा फसल के प्रारंभिक विकास के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। बुवाई के 45 दिनों तक नाइट्रोजन का उपयोग फायदेमंद होता है, लेकिन इसके बाद नाइट्रोजन देने से कांदा सड़न की समस्या हो सकती है। नाइट्रोजन का अधिक उपयोग फसल को रोग प्रवण भी बनाता है।

फॉस्फोरस और पोटाश प्रबंधन

फॉस्फोरस जड़ विकास और पोटाश कंद के विकास के लिए आवश्यक हैं। म्यूरेट ऑफ पोटाश या सल्फेट ऑफ पोटाश का उपयोग बुवाई के समय या पहली टॉप ड्रेसिंग में करना चाहिए क्योंकि पोटाश को पौधे द्वारा अवशोषित होने में लंबा समय लगता है।

सूक्ष्म पोषक तत्व प्रबंधन

कैल्शियम और बोरॉन कांदा फसल के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण हैं। कैल्शियम कोशिका भित्तियों को मजबूत बनाता है जिससे कांदा की गुणवत्ता और भंडारण क्षमता बढ़ती है। बोरॉन कैल्शियम के अवशोषण में सहायक होता है और कांदे के बाहरी आवरण (पत्तियों) को टूटने से बचाता है।

कांदा की खेती से 25-30 टन प्रति हेक्टेयर उत्पादन लेना है तो पोषक तत्व का सही प्रबंधन इस वैज्ञानिक तरीका से जाने

उर्वरक अनुप्रयोग की समय सारिणी

बेसल डोज (बुवाई के समय)

  • डीएपी: 50 किलो/एकड़

  • म्यूरेट ऑफ पोटाश: 25 किलो/एकड़

  • जैविक खाद: 10 किलो/एकड़

पहली टॉप ड्रेसिंग (30-35 दिन बाद)

  • यूरिया: 50 किलो/एकड़

  • पोटाश: 25 किलो/एकड़

दूसरी टॉप ड्रेसिंग (60-65 दिन बाद)

विशेष सुझाव

  1. कैल्शियम और बोरॉन का फोलियर स्प्रे कंद विकास की अवस्था में अवश्य करें

  2. पानी बंद करने (90 दिन) से 15-20 दिन पहले तक ही उर्वरक देना बंद कर दें

  3. जल घुलनशील उर्वरकों का उपयोग फसल के अंतिम चरणों तक किया जा सकता है

  4. कैल्शियम नाइट्रेट, नैनो कैल्शियम या कैल्शियम ईडीटीए का उपयोग फोलियर स्प्रे के रूप में करें

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Purushottam Bisen

किसान भाई इस ब्लॉग के माध्यम से हम सभी किसान भाइयो को खेती से जुडी अपडेट देते है साथ ही खेती से जुडी योजना एवं कृषि बिजनेस आइडियाज के बारे में भी बताते है

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