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गेहूं की कटाई के बाद खाली खेतों में अपनाएं मोर पलाऊ विधि: मिट्टी की ताकत 4 गुना बढ़ाएं, खरपतवार और कीटों से पाएं स्थायी छुटकारा

गेहूं की कटाई के बाद खाली खेतों में अपनाएं मोर पलाऊ विधि: मिट्टी की ताकत 4 गुना बढ़ाएं, खरपतवार और कीटों से पाएं स्थायी छुटकारा

गेहूं की कटाई के बाद खाली पड़े खेतों में गर्मियों में कुछ सरल उपाय करके आप अपनी भूमि की उर्वरा शक्ति को चार गुना तक बढ़ा सकते हैं। यह विधि न केवल आपके भविष्य के खर्चों को कम करेगी, बल्कि खरपतवार, कीटों और रोगों से भी स्थायी छुटकारा दिलाएगी। इस पद्धति को अपनाने से आपको बार-बार उर्वरक डालने की आवश्यकता नहीं होगी और प्राकृतिक रूप से ही आपकी फसलों को पर्याप्त पोषण मिलता रहेगा।

पारंपरिक तरीकों की कमियाँ और नुकसान

अधिकांश किसान गेहूं की कटाई के बाद या तो खेत को वैसे ही छोड़ देते हैं या फिर साधारण कल्टीवेटर चला देते हैं। यह दोनों ही तरीके अपूर्ण हैं। खेत को खुला छोड़ने से सूर्य की गर्मी का पूरा लाभ नहीं मिल पाता, जबकि कल्टीवेटर से मिट्टी के छोटे-छोटे ढेले बनते हैं जो गहराई तक सूर्य की गर्मी को प्रवेश नहीं करने देते। इसके अलावा, इन तरीकों से खेत में मौजूद हानिकारक कीट, फफूंद और खरपतवार पूरी तरह नष्ट नहीं होते, जो अगली फसल के लिए समस्या बन जाते हैं।

गेहूं की कटाई के बाद खाली खेतों में अपनाएं मोर पलाऊ विधि: मिट्टी की ताकत 4 गुना बढ़ाएं, खरपतवार और कीटों से पाएं स्थायी छुटकारा

मोर पलाऊ विधि:

मोर पलाऊ (मोल्डबोर्ड प्लाऊ) एक प्रभावी कृषि यंत्र है जो खेत को गहराई तक जोतता है और बड़े-बड़े ढेले बनाता है। इस विधि को अपनाने के निम्नलिखित लाभ हैं:

मोर पलाऊ से बने बड़े ढेले सूर्य की गर्मी को गहराई तक पहुँचने देते हैं, जिससे मिट्टी में छिपे हानिकारक कीट, उनके अंडे और लार्वा पूरी तरह नष्ट हो जाते हैं। यह विधि फफूंद और अन्य रोगजनकों को भी समाप्त कर देती है। खरपतवार विशेषकर मोथा और दूब घास की जड़ें सूखकर नष्ट हो जाती हैं, जिससे भविष्य में खरपतवार नियंत्रण पर होने वाला खर्च कम हो जाता है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह विधि मिट्टी की जल धारण क्षमता और वायु संचार में सुधार करती है, जिससे भूमि की प्राकृतिक उर्वरता कई गुना बढ़ जाती है।

मोर पलाऊ विधि को सफल बनाने के लिए आवश्यक सावधानियाँ

खेत को मोर पलाऊ चलाने से पहले पलेवा नहीं करना चाहिए। मिट्टी पूरी तरह सूखी होनी चाहिए ताकि ढेले अच्छी तरह बन सकें और सूर्य की गर्मी गहराई तक पहुँच सके। मोर पलाऊ चलाने का सबसे उपयुक्त समय अप्रैल से जून के बीच है जब सूर्य की गर्मी अधिकतम होती है। खेत को इस अवस्था में कम से कम 4-6 सप्ताह तक खुला छोड़ देना चाहिए। इस दौरान गर्म हवाएँ चलने से आस-पास की उपजाऊ मिट्टी आपके खेत में जमा हो जाती है, जो प्राकृतिक खाद का काम करती है।

मोर पलाऊ विधि के अतिरिक्त लाभ

जड़ गाँठ निमेटोड और अन्य मृदा जनित रोगों की समस्या से छुटकारा मिलता है क्योंकि सूर्य की तीव्र गर्मी इन रोगजनकों को पूरी तरह नष्ट कर देती है। मिट्टी की संरचना में सुधार होता है, जिससे जड़ों का विकास बेहतर होता है और पौधों को पोषक तत्व आसानी से उपलब्ध होते हैं। इस विधि को अपनाने से अगली फसल में रासायनिक उर्वरकों की आवश्यकता 30-40% तक कम हो जाती है, जिससे लागत में भारी बचत होती है।

प्राकृतिक खेती की ओर एक कदम

मोर पलाऊ विधि भारतीय किसानों के लिए एक वरदान साबित हो सकती है। यह न केवल लागत कम करती है बल्कि पर्यावरण के अनुकूल और टिकाऊ कृषि को भी बढ़ावा देती है। गर्मियों के इस सुनहरे अवसर का लाभ उठाकर किसान अपनी भूमि की उत्पादकता को कई गुना बढ़ा सकते हैं। याद रखें, स्वस्थ मिट्टी ही स्वस्थ फसल की नींव है, और मोर पलाऊ विधि इस नींव को मजबूत बनाने का सबसे प्रभावी तरीका है। इस वर्ष अपने खाली खेतों में इस विधि को अवश्य आजमाएँ और प्राकृतिक रूप से समृद्ध फसल का आनंद लें।

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Purushottam Bisen

किसान भाई इस ब्लॉग के माध्यम से हम सभी किसान भाइयो को खेती से जुडी अपडेट देते है साथ ही खेती से जुडी योजना एवं कृषि बिजनेस आइडियाज के बारे में भी बताते है

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