आमतौर पर युवा जब महानगरों का रुख करते हैं, तो उनका सपना किसी बड़े विश्वविद्यालय से पढ़ाई करने के बाद कॉरपोरेट कंपनी में भारी-भरकम पैकेज वाली नौकरी पाना या सिविल सेवा की तैयारी करना होता है। लेकिन आज हम आपको एक ऐसी युवा लड़की से मिलवाने जा रहे हैं, जिसने दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदू कॉलेज से इकोनॉमिक्स में ऑनर्स की पढ़ाई की, लेकिन पढ़ाई के बाद उसने किसी मल्टीनेशनल कंपनी या कॉरपोरेट हाउस को नहीं चुना, बल्कि खेती-किसानी को अपना करियर बनाया। आज वह बिना अपनी खुद की जमीन के भी खेती से लाखों रुपये कमा रही हैं। यह कहानी है अनुष्का जैसवाल की, जिन्होंने कृषि क्षेत्र में एक नया मुकाम हासिल किया है।
अनुष्का जैसवाल के मन में कैसे आया खेती का विचार?
अनुष्का का परिवारिक पृष्ठभूमि कृषि से जुड़ा हुआ नहीं था। उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि वह खेती को अपना करियर चुनेंगी। दिल्ली यूनिवर्सिटी से इकोनॉमिक्स की पढ़ाई के बाद उनके सामने कॉरपोरेट जॉब या सिविल सर्विस जैसे विकल्प थे, लेकिन उन्हें लगा कि यह रास्ता उनके लिए नहीं है। उन्होंने कुछ अलग करने की सोची और फ्रेंच भाषा सीखने के साथ-साथ यूपीएससी की तैयारी भी की, लेकिन उन्हें लगा कि वह अभी तय नहीं कर पा रही हैं कि उनका असली पैशन क्या है।
एक समय ऐसा आया जब अनुष्का को स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ा। उन्हें माइग्रेन की समस्या थी, जिसके कारण वह तनाव में रहती थीं। इसी दौरान उन्होंने घर पर किचन गार्डनिंग शुरू की। पौधों के साथ समय बिताते हुए उन्हें शांति मिलती थी और उनका तनाव कम होता था। यहीं से उनके मन में खेती को करियर के रूप में अपनाने का विचार आया।
अनुष्का जैसवाल ने कैसे की शुरुआत?
अनुष्का ने खेती की शुरुआत एक एकड़ जमीन लीज पर लेकर की। उनके पास खुद की कोई जमीन नहीं थी, लेकिन उन्होंने टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करके खेती को एक नया आयाम दिया। उन्होंने नोएडा और सोलन से एडवांस्ड एग्रीकल्चर और मशरूम की ट्रेनिंग ली। सरकारी सब्सिडी का लाभ उठाते हुए उन्होंने पॉलीहाउस लगाया और प्रोटेक्टेड कल्टीवेशन शुरू किया।
उन्होंने सबसे पहले इंग्लिश कुकुम्बर और रेड बेल पेपर जैसी फसलें उगाईं। धीरे-धीरे उन्होंने एग्जॉटिक वेजिटेबल्स जैसे लेट्यूस, पार्सले और बेबी कोर्न की खेती शुरू की। आज वह 6 एकड़ जमीन पर खेती कर रही हैं और सालाना लाखों रुपये कमा रही हैं।
टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल:
अनुष्का ने अपनी खेती में मॉडर्न तकनीकों का भरपूर इस्तेमाल किया। उनके पॉलीहाउस में ड्रिप इरिगेशन, मल्चिंग, फॉगर्स, स्प्रिंकलर्स और सर्कुलेशन फैन जैसी सुविधाएं हैं। इन तकनीकों की मदद से वह बाहर के मौसम के अनुसार अंदर का तापमान नियंत्रित करती हैं। उदाहरण के लिए, अगर बाहर का तापमान 42 डिग्री है, तो वह पॉलीहाउस के अंदर का तापमान 32-35 डिग्री तक मेंटेन कर लेती हैं। इससे पौधों को फंगल इन्फेक्शन और अत्यधिक गर्मी से बचाया जा सकता है।
ड्रिप इरिगेशन से पानी की बचत होती है और फसलों को सही मात्रा में पोषण मिलता है। अनुष्का के अनुसार, उनकी खेती में 90% तक पानी की बचत होती है, जो पर्यावरण के लिए भी फायदेमंद है।
मार्केटिंग और बिक्री:
अनुष्का की सभी सब्जियां लखनऊ के बाजार में ही बिक जाती हैं। वह बी2बी (B2B) मॉडल पर काम करती हैं और सीधे होटल्स, रेस्तरां और वेंडर्स को अपना प्रोडक्ट सप्लाई करती हैं। उनके पास एक डेडिकेटेड वेंडर नेटवर्क है, जो उनकी फसलों को खरीदकर बाजार में बेचता है। इस तरह उन्हें मार्केटिंग में कोई दिक्कत नहीं होती और उनका सारा उत्पाद आसानी से बिक जाता है।
खेती से कितना कमाती हैं?
अनुष्का के अनुसार, अगर खेती सही तकनीक और प्लानिंग के साथ की जाए, तो यह घाटे का सौदा नहीं है। उनका पॉलीहाउस प्रोजेक्ट ढाई साल में ही ब्रेक-ईवन हो गया था। आज वह एक एकड़ से सालाना 15 लाख रुपये का मुनाफा कमा रही हैं। उनके ओपन फील्ड फार्मिंग प्रोजेक्ट ने भी छह महीने में ही रनिंग कॉस्ट निकाल दी है और अब शुद्ध मुनाफा दे रहा है।
निष्कर्ष: युवाओं के लिए प्रेरणा
अनुष्का जैसवाल की कहानी साबित करती है कि अगर खेती को मॉडर्न तरीके से किया जाए, तो यह किसी भी कॉरपोरेट जॉब से कम नहीं है। उन्होंने बिना अपनी जमीन के, सिर्फ लीज पर जमीन लेकर और टेक्नोलॉजी का सही इस्तेमाल करके सफलता हासिल की है। उनकी यह सफलता युवाओं के लिए प्रेरणा है कि अगर दृढ़ निश्चय और सही रणनीति के साथ काम किया जाए, तो खेती भी एक लाभदायक और सम्मानजनक करियर विकल्प हो सकता है।
अनुष्का आज न सिर्फ खुद सफल हैं, बल्कि 15 से अधिक परिवारों को रोजगार देकर समाज में बदलाव ला रही हैं। उनकी यह यात्रा साबित करती है कि “खेती अब केवल पारंपरिक काम नहीं, बल्कि एक प्रोफेशनल और प्रॉफिटेबल बिजनेस भी है।

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