किसान भाइयों, यदि आप खीरे की खेती कर रहे हैं या इसकी शुरुआत करने की सोच रहे हैं, तो आप बिल्कुल सही आर्टिकल पर आए हैं। इस लेख में हम आपको खीरे की टॉप 5 वैरायटियों के बारे में बताएंगे, जिनकी खेती करके आप अच्छा खासा मुनाफा कमा सकते हैं।
वैरायटी का चुनाव क्यों है जरूरी?
खेती में सबसे महत्वपूर्ण होता है सही वैरायटी का चयन। यदि वैरायटी खराब हुई तो चाहे आप कितनी भी मेहनत कर लें, आपको मनचाहा उत्पादन नहीं मिलेगा। वैरायटी अच्छी होगी तो कम संसाधन में भी बेहतर रिजल्ट मिलेगा।
अनुभवी किसान से जानिए खीरे की सफल खेती के राज
हमने बातचीत की राहुल पटेल जी से, जो उत्तर प्रदेश के अंबेडकर नगर जिले से हैं। इन्होंने हर मौसम में खीरे की खेती की है और काफी अच्छा मुनाफा कमाया है। उनका अनुभव किसानों के लिए काफी मददगार साबित हो सकता है।
खीरे की बुवाई का सही समय क्या है?
उत्तर भारत में खीरे की बुवाई का सबसे उपयुक्त समय फरवरी का महीना होता है। इस समय बुवाई करने पर पौधे की ग्रोथ अच्छी होती है और उत्पादन भी अधिक होता है। हालांकि, अप्रैल के अंत और मई में इसके दाम काफी कम हो जाते हैं। वहीं जून और उसके बाद खीरे के रेट फिर से अच्छे हो जाते हैं।
खीरे की 5 जबरदस्त वैरायटी जो आपको देंगे शानदार उत्पादन
1. नाज़िया – ईस्ट वेस्ट कंपनी
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सालभर किसी भी मौसम में उगाई जा सकती है।
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गर्मियों में भी शानदार उत्पादन देती है।
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लाइट ग्रीन कलर और शाइनिंग अच्छा होता है।
2. चित्रा – हाईवेज कंपनी
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इसे जनवरी और फरवरी में ही लगाना चाहिए।
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अप्रैल और मध्य मार्च में नहीं लगाना चाहिए।
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उत्तम उत्पादन क्षमता, लेकिन सीमित सीजन।
3. क्रिश – VNR कंपनी
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केवल 32 दिनों में फल देना शुरू करता है।
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मोटा छिलका और मोटा फल, बारिश के सीजन के लिए बेस्ट।
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जून से अक्टूबर तक इसकी खेती करें, सितंबर तक लगाएं।
4. रागिनी – अंकुर सीड्स
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मीडियम डार्क ग्रीन कलर, अच्छी शाइनिंग के साथ।
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लंबा और पतला खीरा बनता है।
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उत्तर भारत के किसान इसे काफी पसंद करते हैं।
5. बेले – नोन यू सीड्स
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डार्क ग्रीन कलर लेकिन अच्छी चमक के साथ।
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मार्केट में अच्छा डिमांड, दिखने में ताजा लगता है।
मार्केट की मांग के अनुसार करें वैरायटी का चुनाव
हर क्षेत्र की मार्केट अलग होती है। जहां कुछ इलाकों में लाइट ग्रीन खीरा पसंद किया जाता है, वहीं कहीं पर देसी खीरा ज्यादा बिकता है। जैसे राजस्थान और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मोटा और हल्का खीरा पसंद किया जाता है। इसलिए वैरायटी का चुनाव अपने क्षेत्र की मांग के अनुसार करें।
पॉलीहाउस वाली वैरायटी क्यों न लगाएं?
कुछ पॉलीहाउस वैरायटी जैसे एक गांठ में तीन-तीन फल देने वाली किस्में भी हैं, लेकिन मार्केट में इनका डिमांड नहीं होता। जब बाहर की सप्लाई कम होती है, तभी ये बिकती हैं। इनकी खेती करना ज्यादा महंगा और रिस्की होता है।
उत्पादन बढ़ाने के लिए करें पोषण प्रबंधन
खीरे की फसल सामान्यतः 90-100 दिनों की होती है। 40-45 दिन में फल निकलने लगते हैं। यदि पौधों को पर्याप्त पोषक तत्व नहीं मिले तो फल टेढ़े-मेढ़े और खराब बनते हैं, जिससे बाजार में उनकी वैल्यू गिर जाती है। इसलिए सही पोषण देना जरूरी है।
निष्कर्ष:
हमने जिन वैरायटियों का जिक्र किया है, वे हमारे अनुभव पर आधारित हैं। यदि आप दक्षिण भारत या भारत के किसी और कोने से हैं, तो अपने क्षेत्र की मार्केट की मांग और मौसम के अनुसार वैरायटी का चुनाव करें। सही जानकारी और पोषण प्रबंधन के साथ आप खीरे की खेती से लाखों का मुनाफा कमा सकते हैं।
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