भिंडी की खेती करते समय अक्सर किसान हरेपन को देखकर यूरिया की मात्रा बढ़ा देते हैं, लेकिन यह तरीका सही नहीं है। यूरिया की अधिकता से सफेद मच्छर, ब्लाइट और अन्य रोगों का प्रकोप बढ़ सकता है। इसलिए, सही पोषक प्रबंधन से न केवल पौधों की वृद्धि बेहतर होती है, बल्कि उत्पादन में भी कई गुना वृद्धि होती है। इस लेख में हम आपको बताएंगे कि कैसे फास्फोरस, पोटाश, कैल्शियम और अन्य पोषक तत्वों के सही प्रयोग से आप अपनी भिंडी की फसल से 50 से 60 तक तुड़ाई प्राप्त कर सकते हैं।
फसल की वर्तमान स्थिति और प्रबंधन की जरूरत
जैसा कि एग्री डॉक्टर तुषार भट ने बताया, जब भिंडी की फसल फ्लावरिंग स्टेज में पहुंचती है और शुरुआती 1-2 तुड़ाइयां हो चुकी होती हैं, तब पोषक तत्वों का प्रबंधन सबसे ज्यादा जरूरी हो जाता है। इस समय पौधे में ग्रीनरी यानी हरियाली अच्छी रहती है और खेत में कीट या रोगों का नामोनिशान नहीं होता। ऐसे में उत्पादन बढ़ाने के लिए जरूरी है कि डाली बढ़ाने वाले पोषक तत्वों पर ध्यान दिया जाए।
फास्फोरस का महत्व और डालियों की वृद्धि
भिंडी के पौधों में आमतौर पर एक ही मुख्य तना होता है, जिससे एक-एक भिंडी का फूल और फल निकलता है। यदि आप फास्फोरस और अन्य वाटर सॉल्युबल पोषक तत्वों का प्रयोग करते हैं, चाहे वह स्प्रे के माध्यम से हो या मिट्टी में, तो पौधे में डालियों की संख्या बढ़ती है। जब एक की जगह तीन डालियां निकलती हैं, तो उत्पादन तीन गुना तक बढ़ सकता है। इसलिए, डालियों की वृद्धि के लिए फास्फोरस देना बहुत जरूरी है।
यूरिया के दुष्प्रभाव और नाइट्रोजन का सही स्रोत
किसान भाई अक्सर हरियाली देखकर यूरिया का अत्यधिक प्रयोग कर देते हैं, जिससे सफेद मच्छर और अन्य कीटों का हमला बढ़ जाता है। यूरिया के स्थान पर नाइट्रोजन की पूर्ति के लिए अमोनियम सल्फेट का प्रयोग करना चाहिए, जो पौधों को संतुलित पोषण प्रदान करता है और रोगों के प्रकोप को कम करता है।
पोटाश, कैल्शियम और सूक्ष्म पोषक तत्वों का प्रयोग
भिंडी के पौधों में लगातार फूल और फल आने की प्रक्रिया होती रहती है, इसलिए पोटाश और कैल्शियम देना अत्यंत आवश्यक है। इसके अलावा, बोनमील और जिंक जैसे सूक्ष्म पोषक तत्वों का स्प्रे या मिट्टी में प्रयोग करने से पौधों की सहनशक्ति बढ़ती है और उत्पादन में भारी इजाफा होता है। इन पोषक तत्वों से पौधे मजबूत बनते हैं और अधिक समय तक उत्पादन देते हैं।
कीट प्रबंधन और मौसम का प्रभाव
ग्रीष्मकालीन भिंडी की फसल में सामान्यतः रोग कम आते हैं, लेकिन तापमान 35 डिग्री सेल्सियस से अधिक होने पर वातावरण में नमी की कमी हो जाती है, जिससे माइट्स यानी मकड़ी का प्रकोप बढ़ सकता है। ऐसे में समय रहते नियंत्रण के उपाय करना जरूरी है, ताकि फसल पर नकारात्मक प्रभाव न पड़े और उत्पादन लगातार बना रहे।
उत्पादन में वृद्धि के आसान उपाय
यदि आप इन सरल लेकिन प्रभावी पोषक तत्व प्रबंधन तकनीकों का पालन करते हैं, तो आपकी भिंडी की फसल 30-40 की जगह 50-60 तुड़ाई तक उत्पादन दे सकती है। इससे न केवल आपकी मेहनत का अधिक लाभ मिलेगा, बल्कि बाजार में अच्छी कीमत भी मिल पाएगी।
निष्कर्ष
कुल मिलाकर, भिंडी की खेती में बंपर उत्पादन पाने के लिए केवल यूरिया पर निर्भर रहना सही नहीं है। आपको फास्फोरस, अमोनियम सल्फेट, पोटाश, कैल्शियम और सूक्ष्म पोषक तत्वों का संतुलित प्रबंधन करना चाहिए। इसके अलावा, कीट और रोगों पर नजर रखना भी महत्वपूर्ण है। इन सभी उपायों को अपनाकर किसान भाई निश्चित रूप से अपनी भिंडी की फसल से अधिकतम लाभ उठा सकते हैं।

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