HD 2967 गेहूं की एक उन्नत किस्म है जिसे 2011 में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) द्वारा विकसित किया गया था। यह किस्म भारत के प्रमुख गेहूं उत्पादक राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा और पश्चिम बंगाल में बहुत लोकप्रिय है। इसकी सबसे बड़ी विशेषता इसकी लंबी (लगभग 15 सेमी) और भरी हुई बालियाँ हैं जो उच्च उत्पादन देती हैं। यह किस्म विभिन्न प्रकार की मिट्टियों जैसे दोमट, बलुई दोमट आदि में सफलतापूर्वक उगाई जा सकती है।
बुवाई का उपयुक्त समय और विधि
HD 2967 गेहूं की बुवाई के लिए 1 नवंबर से 25 नवंबर तक का समय सबसे उपयुक्त माना जाता है। बुवाई की विधि के अनुसार बीज की मात्रा अलग-अलग होती है। यदि सीड ड्रिल से बुवाई की जाए तो प्रति एकड़ 32-35 किलोग्राम बीज पर्याप्त होता है, जबकि छिटकवाँ विधि से बुवाई करने पर 40 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। बुवाई से पहले यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि खेत में पर्याप्त नमी हो और मिट्टी अच्छी तरह से तैयार हो।
पोषण प्रबंधन और सिंचाई
इस किस्म के लिए पोषक तत्व प्रबंधन बहुत महत्वपूर्ण है। खेत की तैयारी के समय बेसल डोज के रूप में NPK (12:32:16) या DAP (डाई अमोनियम फॉस्फेट) का प्रयोग किया जा सकता है। DAP में 18% नाइट्रोजन और 46% फॉस्फोरस होता है, लेकिन इसमें अलग से पोटाश मिलाना आवश्यक होता है। सिंचाई के लिए पहली सिंचाई बुवाई के 21-25 दिन बाद क्राउन रूट इनिशिएशन (CRI) अवस्था में करनी चाहिए, जो फसल के लिए बहुत महत्वपूर्ण होती है।
रोग प्रतिरोधक क्षमता और बीज उपचार
HD 2967 गेहूं की किस्म पीला रतुआ, भूरा रतुआ और झुलसा रोगों के प्रति प्रतिरोधी है। बुवाई से पहले बीज उपचार अत्यंत आवश्यक है। नैनो DAP से बीज उपचार के लिए 5 मिलीलीटर प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से उपचारित करना चाहिए। यानी 40 किलोग्राम बीज के लिए 200 मिलीलीटर नैनो DAP की आवश्यकता होगी। उपचार के लिए बीज को अच्छी तरह से मिलाकर आधे घंटे तक सूखने दें, फिर बुवाई करें।
उत्पादन क्षमता और फसल अवधि
इस किस्म से प्रति एकड़ 25-28 क्विंटल तक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। फसल लगभग 140-145 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। एक महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि इस किस्म में गिरने (लॉजिंग) की समस्या नहीं होती, जिससे कटाई के समय नुकसान की संभावना कम हो जाती है।
निष्कर्ष
HD 2967 गेहूं की एक उत्कृष्ट किस्म है जो भारतीय किसानों के लिए वरदान साबित हुई है। यदि सही समय पर बुवाई, उचित पोषण प्रबंधन और समय पर सिंचाई की जाए तो इससे अच्छा उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। यह किस्म न केवल उच्च उत्पादन देती है बल्कि कई प्रमुख रोगों के प्रति प्रतिरोधी भी है, जिससे किसानों को फसल सुरक्षा में भी मदद मिलती है।

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